कुछ मुस्कान, कुछ अरमान, और संघर्ष जारी है !

कुछ मुस्कान, कुछ अरमान, और संघर्ष जारी है !

चर्चा है फुटबॉल की। हाल में, एक महिला फुटबॉल प्रदर्शन काफी चर्चा में रहा। 60 लड़कियां पटना ज़िला के ग्रामीण छेत्र से आकार संत ज़ेवियर कॉलेज मैं फुटबॉल खेले। नव गठित बिहार वुमेन’स स्पोर्ट्स प्रमोशन असोशिएशन का पहला प्रयास था ।

जोगीबेग दुरुखी, पटना सिटि की शफ़ा परवीन ग्यारहवी वर्ग, कॉलेज ऑफ कॉमर्स की छात्रा बचपन से किसी न किसी खेल से जुड़ना चाहती थी।

उसका सपना एक खिलाड़ी बनना है पर  प्रशिक्षको की कमी होने के वजह सभी खेलो को  खेलना छोड़ दिया। तभी उसकी ईज़ाद एनजीओ की सदस्य कहकषा ने उसका मार्गदर्शन किया। उन्होने दानापुर मे होने वाली तीन दिवसीय फूटबाल अभियान के बारे मे बताया।   वो वापस आकर लड़कियो को इकठा किया और उन्हे फुटबाल खेलना सिखाई। शफ़ा को उसके पूरे परिवार ने बहुत प्रोत्शहित किया और हर वक़्त उसका मनोबल बढ़ाते रहे है। अब शफ़ा कई लड़कियों की प्रेरक बन चुकी है।

सभी के परिवार एक जैसे नही होते है खास कर जो लड़कियो को फूटबाल खेलने को लिए प्रोत्साहित करे। तौसीफ़ परवीन छठी वर्ग की छात्रा फूटबाल खेलने को ले कर अपने पिता ओर भाई से हर वक्त डाट-मार खाई। इसके पिता ने फूटबाल छुरवाने के लिए उसको उसकी बुआ के घर भेज दिये और वहाँ भी उसे फुटबाल खेलने नही दिया गया आर घर मे बंद कर दिया गया। तौसीफ़ अपने घर से भाग कर वापस अपने घर आ गई। उसके बाद इसने शफ़ा दीदी के द्वारा ईज़ाद एनजीओ से जूरी और अपने परिवार को बहुत समझाई। अब वो खेल रही है और बहुत खुश है, लेकिन उसकी बुआ से बात नही होती है।तौसीफ़ बड़ी हो कर पुलिस ऑफिसर बनाना चाहती है।

वहीं सलमा परवीन अपने परिवार से सी छुप कर फूटबाल खेलती  हैं इसके भाई और पिता लड़कियो  को खेल के लिए प्रोत्साहित नही करते उनका मानना है की लड़कियां सिर्फ घर के काम करते हुये अच्छी लगती है ना की खेलते हुये। एक दिन सलमा अपनी दोस्त के साथ बगल के पार्क मे खेल रही थी उसके बड़े भई  ने उसे देख लिया उससे बहुत गुस्सा आया और वो उसकी पिटाई कर दी।  इसके बाद सलमा को चार महीने तक पढ़ाई और प्रैक्टिस बंद करवा दिया गया था। ईज़ाद टीम ने इसका प्रदर्शन देखा और सलमा  के परिवार से बात किया उन्हे समझाया और वो अभी भी खेल रही है। लेकिन उसके घर मे किसी को नही पता है सिर्फ उसकी माँ के सिवाए। सलमा बड़ी हो कर फूटबाल कोच बनना चाहती हैं।

The names of some of the interviewees have been changed (Editor)। This article is part of our Football for Equality campaign.

संवाद और लेखन : नेहा निधि