एक विज्ञापन : या और कुछ ?

एक विज्ञापन : या और कुछ ?

 ट्रांसजेंडर मॉडल वाली ज्वेलरी एड फिल्म इतनी चर्चा में क्यों है?

    केरल की एक कंपनी ‘भीमा ज्वेलरी’ ने अप्रैल में एक विज्ञापन जारी किया था जिसमे एक ट्रांसजेंडर महिला की कहानी कही गई है। 1मिनट 40 सेकंड के इस वीडियो में  बेढंगी सी दिखने वाली एक लड़की, जिसके चेहरे पर ढेर सारे बाल हैं, जिसे खुद पर भरोसा नहीं है, वह किस तरीके से एक खूबसूरत दुल्हन में बदल जाती है।

    इस विज्ञापन का शीर्षक है ‘pure as love’ यानी प्यार की तरह शुद्ध। 22 साल की मीरा सिंघानिया ने इसमें मुख्य किरदार निभाया है।

    मीरा खुद एक ट्रांसवुमन हैं।उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया, “मैं नहीं चाहती थी कि कोई मेरी ट्रांसवुमन वाली पहचान का व्यवसायिक इस्तेमाल करे। मैं इस बात को लेकर भी आशंकित थी कि इस एड फिल्म में ज़िंदगी के बदलावों को दिखाया जाना था, और इन बदलावों से पहले मुझे एक ऐसे लड़के के तौर पर दिखाया जाना था, जिसकी दाढ़ी थी। मगर कहानी पढ़ने के बाद मैने इसके लिए हां कर दी।इस एड के कारण मुझे अपने साथ और सहज होने में मदद मिली।” 

               बरक़रार हैं तकलीफें

    अनुमानिक तौर पर भारत में 20 लाख ट्रांसजेंडर लोग हैं। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया था कि ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकार भी दूसरे लोगों के हक़ के बराबर हैं।मगर आज भी ट्रांसजेंडर लोगों को एक कलंक के तौर पर देखा जाता है। भारत में केरल को ऐसे लोगों के लिए बेहतरीन स्थान माना गया है। 

     भीमा ज्वेलेरी की ऑनलाइन मार्केटिंग डिवीजन हेड नाव्या राव ने इस विज्ञापन का विचार सबसे पहले रखा।उन्होंने कहा, “इस विज्ञापन को मार्केट में लाना सबसे बड़ी चुनौती थी क्योंकि हमारे ज्यादातर स्टोर ग्रामीण इलाकों में हैं। हमें आशंका थी की लोग इन मुद्दों के प्रति कितने जागरूक होंगे? 

              साबित हो सकता है गेम चेंजर

    इस विज्ञापन को थोड़ी बहुत आलोचनाएं झेलनी पड़ी  पर जितनी तारीफें मिलीं उससे नाव्या अभिभूत महसूस कर रही हैं। लोगों ने अधिक संख्या में सकारात्मक प्रतिक्रियाएं व्यक्त की। इनमें से अधिक लोग LGBTQI समुदाय के थे। वीडियो प्लेटफॉर्म ‘फायरवर्क’ की ब्रांड स्ट्रेटजिस्ट सुधा पिल्लई इस विज्ञापन को क्रांतिकारी मानती हैं।

भारत के फ़िल्मों में ट्रांसजेंडर लोगों को अक्सर हास्य कलाकार के तौर पर दिखाया गया है। पिल्लई कहती हैं, “विज्ञापनों और टीवी धारावाहिक का फ़िल्मों की तुलना में कहीं ज़्यादा असर होता है। शुरू में इन्हें लेकर थोड़ी हिचक हो सकती है, लेकिन ये गेम चेंजर साबित हो सकती है।

[Prepared by Intern Seema Kisku, from a BBC report]