पटना :फास्ट ट्रैक कोर्ट भी अब फास्ट नहीं रह गया है और वहां भी लंबित केसों की काफी संख्या है। बिहार के 55 फास्ट ट्रैक कोर्ट में 22,616 मामले लंबित हैं।
शराबबंदी के पहले जेलों की क्षमता में भी अपेक्षित वृद्धि नहीं की गयी। वर्तमान में बिहार की जेलों की अधिकतम क्षमता 39,432 कैदियों की है, जिसे भविष्य में 46,616 तक बढ़ाने की योजना है । अप्रैल 2016 से दर्ज अकेले शराबबंदी के मामलों में 1,39,724 लोग जेल जा चुके हैं।
बिहार राज्य में त्वरित न्याय दिलाने के लिए स्थापित किये गये फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले आने में विलंब होने लगा है। पटना स्थित मीडिया में ख़बर है कि मामले अदालतों में बढ़ रहे हैं। उधर जेलों में आरोपितों की संख्या बढ़ रही है। पर्याप्त संख्या में जजों नहीं है। पुलिस की सुस्ती से फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसल की गति धीमी पड़ गयी है।
पटना विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विधि विभाग द्वारा शराबबंदी को लेकर की गयी में इस बात का उल्लेख किया गया है । शोध में कहा गया है कि अगर इसी तरह की स्थिति बनी रही तो आनेवाले दिनों में न्यायालयों पर अधिक दबाव दिखेगा
पटना विवि स्नातकोत्तर विधि विभाग के छात्र प्रत्युष कुमार द्वारा की गयी शोध में बताया गया है कि सरकार ने 2016 में पूर्ण शराबबंदी कानून को लागू किया।
इस कानून को लाने के पहले न्यायालयों और जेलों पर पड़ने वाले दबावों का अध्ययन नहीं किया गया। इस बीच न्यायाधीशों के रिक्त पदों पर उचित संख्या में बहाली भी नहीं हुई। पोक्सो, एक्साइज, लोक सेवकों के विरुद्ध मामले, फास्ट ट्रैक कोर्ट आदि विशेष न्यायालयों के गठन से कोर्ट पर अधिक दबाव आया है।
हर माह 6577 केसों का बैकलॉग
रिसर्च स्टडि में यह भी बताया गया है कि न्यायाधीशों की गुणवत्ता की जांच का पैमाना केस निबटारे की संख्या होने से सिविल मामलों की भरपूर अनदेखी हो रही है ।
दीवानी मामलों के निबटारे में काफी वक्त लगता है । ऐसे में कोई न्यायाधीश अपने कार्य गणना को खराब नहीं करना चाहते हैं । सिविल मामलों में केस के दबाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 39 पारिवारिक अदालतों में कुल 46,735 मामले लंबित हैं ।
बिहार की जेलों में 745 कैदी 70 वर्ष से ज्यादा उम्र के हैं।
अप्रैल 2016 से दर्ज अकेले शराबबंदी के मामलों में 1,39,724 लोग जेल जा चुके हैं। इन मामलों में ट्रायल अभी बाकी है, लेकिन साइंटिफिक जांच होने के कारण इनका निष्पादन कोर्ट से जल्द होने की संभावना बनी रहेगी।
ऐसे में इस क्षमता तक कैदियों को रखने के लिए आधारभूत संरचना व कर्मियों की संख्या में जो अपेक्षित इजाफा था वो पिछले दो सालों में सरकार ने नहीं किया है, न ही अब तक इसका कोई समेकित अध्ययन हुआ।
[prepared from media reports]