वह खुले आसमान के नीचे अपने पसंद का वस्त्र पहन कर निकली थी, चेहरे पर मुस्कान भरी समाज के बीच खडी थी । क्या पता था उस बेचारी को की कोई उसे देख रहा है, समाज मे बैठे हर उम्र के लोग उसे गंदी नज़रो से भाप रहे है ।
यह कोई कविता नहीं, यह कोई शायरी नहीं है। ये दर्द है उस हर महिला की जो इस समाज मे आज भी दूसरों की नज़रो के कारण खुद सर झुका कर चलती है।
अजीब है! न जाने यह मानसिकता कहा से पैदा हो रही है। क्यू नही लोग इस पर आवाज उठा रहे है। आज भी हमारे देश में महिलाओ का बलात्कार हो रहा हैं। और जब उनसे इसका कारण पूछा जाता है तो वो उनके वस्त्र पहनने के ढंग पर सवाल उठाते हैं। एक सवाल है उस समाज के हर एक व्यक्ति से, जब एक सात साल की छोटी सी बच्ची फ्रॉक पहनी रहती है, तो उसका क्या कुसुर है ? मगर वह फिर भी समाज के इस घिनौनी मानसिकता का शिकार क्यू हो जाती हैं? इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
एक स्त्री जब साड़ी मे होती है तो उसे भारतीय परम्पराओ का संस्कार माना जाता है। मगर जब कोई स्त्री जीन्स या टॉप में होती है तो समाज उसे गलत नज़र से देखता हैं। आखिर क्यूँ ? क्या महिलाओ को अपनी ज़िंदगी जीने का हक़ नहीं हैं ? वो चाहे जैसे भी अपनी ज़िंदगी को जीना चाहे जी सकती है। उन्हे किसी और की मानसिकता का असर नही परना चाहिए। क्यू हम अपने नज़रो के कारण उन्हे अपने नेत्रो में बांध कर रखते हैं ? जब किसी पुरुष पर वस्त्र पहने का पाबंद नहीं हैं तो फिर महिलाओ पर क्यूँ ? क्या वे पुरुषो की तरह अपना समान जीवन व्यक्तित नहीं कर सकती ? आज यह सवाल बहुत बड़ा मुद्दा बन चुका हैं। और इसे हम अनदेखा नहीं कर सकते। न जाने इस वजह से कितनी महिलाओ का बलात्कार हुआ है और न जाने कितना होने वाला हैं। अगर इसे अब नहीं रोका गया तो यह घटना आपके घर तक भी दस्तक दे सकता हैं।
आपके घर में भी महिलाए हैं, आपके भी कोई महिला मित्रा होंगी, तो क्या तब भी आप उन लोगो को इन्हे उसी नज़र से देखने देंगे ? सोचियेगा जरूर ! आखिर ये समाज हम सब से ही तो बना हैं।
सौरव सोनी
Nice line