सहारा मेरी आत्मा को गवारा नहीं : ऋतू चौबे

सहारा मेरी आत्मा को गवारा नहीं : ऋतू चौबे

“कठिन चीजें हमारे रास्ते में राखी जाती है हमें रोकने के लिए नहीं, बल्कि हमारे साहस और ताकत को जगाने के लिए।  इस वाक्य को सच कर दिखाया है 37 वर्षीय ऋतू चौबे ने।   बिहार के छोटे से शहर मोहनिया की रहनेवाली ऋतू चौबे फिलहाल अभी  कलाम ग्रुप ऑफ़ कंपनी, किदवई पूरी  में फाइनेंस एग्जीक्यूटिव की नौकरी 9 सालो से कर रही है।

ऋतू बताती है की बचपन में दिव्यांग होने के कारण कई वर्षो तक वे पढ़ नहीं पायी फिर जब उनका दाखिला स्कूल में हुआ तो आने – जाने में तथा और भी कई कठिनायों का सामना करना पड़ा।  कई शिक्षक ठीक से बात नहीं करते थे।  थोड़ा देर हो जाने पर क्लास में बैठने नहीं दिया जाता था और हर क्लास में क्लासरूम भी बदलने पड़ते थे। मेरे क्लास के बच्चे मुझसे बात भी नहीं करते थे और मजाक उड़ाते थे।

ऋतू चौबे

1996 में ऋतू 10 वीं के एग्जामिनेशन में फर्स्ट डिवीजन से पास हुई, पर कम उम्र में शादी करने की प्रथा के कारण  उसी  समय उनके पिता ने शादी के लिए लड़के देखना शुरू कर दिया। शादी में भी कई मुश्किलें आई,  दुनिया में कोई भी अपाहिज लड़की को अपने घर नहीं लाना चाहता।  अतः एक दिव्यांग लड़के से शादी करा दी गयी, बहुत जिद के बाद इंटरमीडिएट की। ससुराल में बहुत ताने सुनने पड़े।  पति भी जिम्मेदारी लेने के काबिल नहीं था।

घर की हालातो को देखते हुए नौकरी खोजने लगी पर  इंटरमीडिएट को कोई जलदी नौकरी नहीं देता। कई ने कहा की आपको रखने से हमरे कंपनी का वातावर्ण ख़राब होगा ,  कई ने काम देने से मना कर दिया पर मैंने हार नहीं मानी सहारा मेरी आत्मा को गवारा नहीं।

ऋतू की पहली नौकरी एयरटेल कंपनी में रिसेप्शनिस्ट के तौर पर हुई और उन्हें 900 रूपये महीने दिया जाता था।  पड़ोसी घरवाले को भड़काते  थे फिर भी  काम करते हुए उन्होंने ग्रेजुएशन की पढाई की और DCA का कोर्स भी किया। अभी वो अपने परिवार की जिम्मेवारी खुद उठा रही  है।

ऋतू अपने दिव्यांग भाई और बहनो को संदेश देती है की जिंदगी में हार नहीं मानना चाहिए। अगर आपमें कुछ कमी है, तो कुछ अच्छाई भी होगी।  उस  अच्छाई को समझिये और दुनिया का सहारा बनिए।