शिक्षा किसी भी बच्चे का एक मूल अधिकार होता है और इसकी बढ़ती मांग ने इसे महज व्यापार का रूप दे दिया है। अभी सारे स्कूलों मे बिना सोचे समझे बच्चो का दाखिला ले लिया जाता है। कई कक्षाओं मे 60 से भी अधिक बच्चे पढ़ते है। नतीजा यह होता है की वह कक्षा तो पार कर लेते है पर उनकी बुनियाद ही कमजोर रह जाती है। इतना ही नही उन बच्चो से फीस के तहत मोटी रकम भी वसूली जाती है और वह रकम बिना अंकुश के बढ़ती जाती है और फीस जमा न करने के कारण स्कूल रिजल्ट देने से कतराते है यह गरीब परिवार के बच्चो के लिए पढ़ाई छोड़ने का सबब बन जाती है।
यह मसाला अभी जगहों का है पर दिल्ली सरकार ने इस मसले पर एक नई पहल की है दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) व अन्य किसी सरकारी एजेंसी द्वारा आवंटित जमीन पर बने निजी स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय से स्वीकृति लेनी होगी। गौरतलब है की कई अभिभावकों ने निजी स्कूलों की मनमानी से जुड़ी शिकायतें की और उसकी सुनवाई मे निदेशालय ने सर्कुलर के जरिए स्कूलों से कहा कि फीस बढ़ाने से पहले उन्हें अपने वित्तीय मामलों से जुड़े रिकॉर्ड निदेशालय को देने होंगे। स्कूलों की मनमानी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
स्थानीय खबरों के अनुसार निदेशालय के मुताबिक इन निजी स्कूलों को 30 मार्च से 30 अप्रैल तक अपनी ट्यूशन फीस, अकादमिक सत्र की फीस को बढ़ाने का प्रस्ताव अनिवार्य रूप से भेजना होगा। 30 मार्च से शिक्षा निदेशालय अपनी वेबसाइट में इस व्यवस्था के लिए अलग से लिंक देगा। इसमें स्कूलों को अपने वित्तीय रिकॉर्ड व उससे संबंधित दस्तावेज देना होगा। अधूरी जानकारी मिलने पर स्कूलों को फीस बढ़ाने की स्वीकृति नहीं दी जाएगी। इस अकादमिक सत्र में फीस बढ़ाने के लिए निदेशालय की स्वीकृति लेने के लिए स्कूलों को प्रस्ताव भेजने होंगे।स्कूलों द्वारा भेजे गए प्रस्ताव की जांच की जाएगी। अगर किसी स्कूल ने फीस बढ़ाने का प्रस्ताव निदेशालय को नहीं भेजा तो वह फीस नहीं बढ़ा सकता है। यदि इसके बावजूद फीस बढ़ाने का निर्णय लेने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। अगर यह कानून नियमवाली के अनुसार लागू की जाएगी तो यह अभिभावकों और बच्चो के लिए लिए राहत होगी। साथ ही साथ न ही की सिर्फ दिल्ली मे पर और भी जगहो पे लागू होनी चाहिए।