होली का त्यौहार आते ही बाज़ार रंग ,गुलाल और पिचकारियों से सज चुके है। बाज़ारों में काफी चहल-पहल देखने को मिल रही है। हर वर्ग हर आयु के लोगों के लिए बाज़ारों में होली के मौके पर खरीददारी करने के लिए कुछ न कुछ तो जरूर है।
होली रंगों, उमंगों और खुशियों का त्यौहार है , और इसीलिए होली के एक दिन पहले होलिका दहन मनाई जाती है , जो की बुराई पर अच्छाई का प्रतिक माना गया है। कहा जाता है की हिरण्य कश्यपु ने अपने विष्णु भक्त पुत्र प्रहलाद को मृत्यु दंड दिया था और हिरण्य कश्यपु की बहन होलिका को अग्नि देव का वरदान था ,कि उसे आग कभी नहीं जला सकती। जब होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठने जाती है , तभी वो वरदान वाली चादर से खुद को ढक लेती है , तेज़ हवा के झोके के कारण वो चादर खुद उड़ कर प्रहलाद को धक देती है और विष्णु भक्त प्रहलाद बच जाता है और उसकी जगह होलिका जल जाती है। इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर मनाया जाता है।
पर आज के इस आधुनिक परिवेश में होली कही न कही अपनी छटा से दूर होता दिख रहा है। केमिकल युक्त रंगों और गुलालों के उपयोग के कारण कई लोग आज होली खेलना पसंद नहीं करते। कुछ आसामाजिक तत्वों के कारण आज होली से एक सप्ताह पूर्व और एक सप्ताह बाद तक महिलाएं खासकर स्कूल और कॉलेज जानेवाली लड़कियां घर से निकलने में हिकचति है। मनचलों के लिए होली का अवसर सिर्फ शराब और भांग के नशे में लोगों को परेशान करना हो गया है। पिछले कुछ सालों में हमारे समाज में होली के अवसर पर ही अप्रिय घटनाएं होती है। करते सिर्फ कुछ लोग है , लेकिन उसका खामयाजा पूरे समाज को झेलना पड़ता है।
होली रंगों और उमंगों का त्यौहार है। इसे सभी को प्रेम और सदभाव से मानना चाहिये। वो दिन दूर नहीं जब हमारी आने पीड़ी सिर्फ होली सुनेगी लेकिन देख नहीं पायेगी।
आयुष धन