छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। छठ पूजा को देश के कई हिस्सों में बिहार और उत्तर प्रदेश से आये लोगों की पहचान के रूप में देखा जाता जाता है।
यह पर्व सूर्य और उनकी पत्नी उषा को समर्पित है;लोग बड़े उल्लास के साथ पारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए मानते है । स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व मे शामिल होते है।
छठ पूजा 4 दिनों का पर्व है इसमे पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्जित होता है। पहले दिन स्नान कर सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में बनाई जाती है। अगले दिन से उपवास आरम्भ होता है। परवैतिन दिनभर अन्न-जल त्याग कर शाम मे खीर बनाकर, पूजा करने के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं और इसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को जल अर्पण किया जाता हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं।
छठ पूजा की परम्परा और उसके महत्त्व से जुड़े अनेक पौराणिक और लोक कथाएँ प्रचलित हैं पर यह पूजा का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। श्रद्धा और भक्ति से परिपूर्ण इस पर्व में बाँस से बनी सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्त्तनों, गन्ने का रस, गुड़, चावल और गेहूँ का इस्तेमाल कर प्रसाद बनते है। छठ के गाने लोकगीत लोगो के जीवन से जुड़े होते है।
यह जन सामान्य द्वारा शास्त्रों से अलग अपने रीति-रिवाजों के रंगों में गढ़ी गयी उपासना है। इस पूजा मे कोई वेद, धर्मशास्त्र शामिल नही है इसका केंद्र किसान और ग्रामीण जीवन है। इस व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता है न पंडितो की। जरूरत पड़ती है तो पड़ोसियों के सहयोग की, इस उत्सव के लिए लोग स्वयं अपने सामूहिक अभियान संगठित करते है। व्रतियों के गुजरने वाले रास्तों का प्रबन्धन, नगरों की सफाई, तालाब या नदी किनारे अर्घ्य दान की उपयुक्त व्यवस्था करते है हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व मे इस्लाम सहित अन्य धर्मो के लोगो का भी काफी सहयोग मिलता है।
यह पूजा लोकजीवन पर आधारित है। इसमे पर्यावरण का खास खयाल रखा जाता है तथा यह लोगो मे एकता का भाव उत्पन्न करती है