झारखंड पुलिस ने बीफ़ से संबंधित दो साल पुरानी फ़ेसबुक पोस्ट के लिए जमशेदपुर के एक आदिवासी प्रोफ़ेसर और रंगकर्मी जीतराई हांसदा को गिरफ्तार किया है . झारखंड पुलिस ने उनकी गिरफ्तारी की पुष्टि की है.
हांसदा जमशेदपुर के कोऑपरेटिव कालेज में पढ़ाते हैं. वे उन चुनिंदा आदिवासी रंगकर्मियों में शामिल हैं, जिन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा (एनएसडी) से पढ़ाई की है.
आदिवासियों के विस्थापन पर केंद्रित उनका एक नाटक ‘फे़विकोल’ काफ़ी चर्चित रहा है और देश में कई जगहों पर मंचन के दौरान उसे दर्शकों की सराहना मिल चुकी है.
बीबीसी संवदाता के अनुसार ,जमशेदपुर स्थित साकची थाना के आफिसर इंचार्ज राजीव कुमार सिंह ने कहा कि वह काफ़ी वक़्त से फ़रार चल रहे थे. अब उन्हें न्यायिक हिरासत में घाघीडीह जेल भेज दिया गया है.
राजीव कुमार सिंह ने कहा, “जीतराई हांसदा के ख़िलाफ़ जून 2017 में पुलिस रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी. पुलिस ने क़रीब सवा साल पहले उन्हें फ़रार दिखाकर चार्जशीट दाख़िल की थी. उसके बाद से वह कोर्ट की कार्यवाही में शामिल नहीं हो रहे थे और पुलिस से भागे फिर रहे थे. उन पर धार्मिक उन्माद फैलाकर दो समुदायों के बीच सौहार्द बिगाड़ने, शत्रुता, घृणा एवं वैमनस्य उत्पन्न करने का आरोप था.”
पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक़ जीतराई हांसदा ने 29 मई 2017 को अपने फ़ेसबुक वॉल पर बीफ़ खाने के पक्ष में एक पोस्ट किया था. इससे कथित तौर पर सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ने की आशंका थी.
इसके बाद साकची थाने के सब इंस्पेक्टर अनिल कुमार सिंह को इसकी जांच की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी. उन्होंने चार दिन के अंदर अपनी जांच पूरी की और 2 जून 2017 को उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करा दी. तब वह जमशेदपुर के ग्रेजुएट कॉलेज ऑफ़ वीमेन में पढ़ाया करते थे.
क्या थी फ़ेसबुक पोस्ट
सब इंस्पेक्टर अनिल कुमार सिंह की जांच रिपोर्ट के मुताबिक़, जीतराई हांसदा ने अपने फ़ेसबुक पोस्ट में लिखा था, “हम आदिवासी बीफ़ यानी गौमांस खाते हैं. जाहेर डांगरी विधान (अंतिम संस्कार के रिच्युअल्स) के समय इसका वध करते हैं.”
“इसके अलावा पर्व-त्योहार में भी काटते हैं. तो क्या भारत के क़ानून की वजह से हम अपना खान-पान, रिच्युअल्स यानी पारंपरिक अनुष्ठान बंद कर दें और हिंदू बनकर रहें. आदिवासियत को ख़त्म कर दें. ये कभी नहीं हो सकता…. अगर सही मायने में आदिवासियों को भारत का हिस्सा मानते हों तो आदिवासियों के भी हितों की रक्षा करते हुए ऐसे क़ानून बनाना बंद करो…”
अब नहीं है पोस्ट
हालांकि अब यह पोस्ट जीतराई हांसदा के फ़ेसबुक पेज पर नहीं दिखती. उनकी पत्नी माही सोरेन ने बताया कि संभव है कि उन्होंने यह पोस्ट बाद में हटा ली हो.
माही सोरेन ने बीबीसी से कहा, “हम लोग समझ रहे थे कि अब यह मामला बंद हो चुका है, लेकिन उन्हें तब गिरफ्तार कर लिया, जब वह अपने दोस्तों के साथ थे. गिरफ्तारी के कई घंटों बाद पुलिस ने मुझे इसकी सूचना दी और जीतराई से फोन पर बात कराई.”
“बाद में थाने में मेरी उनसे मुलाकात भी हुई. मैं उनकी अचानक गिरफ्तारी से आश्चर्य में हूं. रविवार होने के बावजूद उन्हें मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर मेरे सामने ही जेल भेज दिया गया. अब हमें कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ेगी.”
छोड़नी पड़ी थी नौकरी
जीतराई हांसदा के इस फेसबुक पोस्ट के बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े छात्रों ने ग्रेजुएट कॉलेज फॉर वीमेन की प्रिंसिपल से मिलकर उन्हें निलंबित करने की मांग की थी.
इसके बाद कोल्हान विश्वविद्यालय ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया. उसका जवाब देने के बावजूद कॉलेज प्रबंधन ने उनका अनुबंध बढ़ाने से इनकार कर अगस्त-2017 में उन्हें कॉलेज से निकाल दिया.
हालांकि, आदिवासियों के प्रमुख संगठन माझी परगना महाल ने कुलपति को पत्र भेजकर उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं करने की अपील भी की थी लेकिन यूनिवर्सिटी ने यह अपील नहीं मानी.
संगठन की दलील थी कि जीतराई हांसदा ने सिर्फ़ आदिवासी परंपरा की बात लिखी है. इससे किसी समुदाय को क्यों ठेस पहुंचेगी. तब से वह सिर्फ़ रंगकर्म से जुड़े थे और आदिवासी मामलों को लेकर मुखर थे.
जीतराई हांसदा की गिरफ़्तारी का विरोध भी हो रहा है
‘साज़िश है गिरफ्तारी’
एक महीने पहले ही उन्होंने जमशेदपुर के ही कोऑपरेटिव कॉलेज में पढ़ाना शुरू किया था. झारखंड के सोशल एक्टिविस्ट इस गिरफ्तारी को उनके ख़िलाफ़ साज़िश करार दे रहे हैं.
झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा की महासचिव व चर्चित लेखिका वंदना टेटे ने उनकी बिना शर्त रिहाई की मांग की है. बकौल वंदना, जीतराई हांसदा ने संविधान विरोधी कोई बात नहीं लिखी थी. उन्होंने अपनी संताल संस्कृति के अनुसार ही फ़ेसबुक पोस्ट किया था. इसके लिए उनकी गिरफ्तारी उचित नहीं है.