कुछ वर्षो पहले सावन और भादों में इतनी वर्षा होती थी कि जल का संकट उत्पन्न हो जाता था।अब जलवायु परिवर्तन के का कारण सावन और भादो में किसानों को सूखे का सामना करना पड़ रहा है। पटना और सारण के ग्रामीण क्षेत्रों में इस बार तालाब एवं जलाशयों में पानी नहीं है। बरसात में लोग पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। हालांकि सावन मे पानी तो कुछ हद तक बरस गया, लेकिन भादो बारिश के लिए तरस रहा है। जिससे किसानों को भाड़ी नुकसान का सामना करना पर रहा है।
मौसम विभाग की ओर से जारी पूर्वानुमान के अनुसार मानसून अवधि में इस बार जून से सितंबर तक अच्छी बारिश की उम्मीद थी, मगर परिणाम पूर्वानुमान के बिल्कुल विपरीत साबित हुआ है। यदि सितंबर तक अच्छी बारिश नहीं हुई तो खरीफ फसल को भारी नुकसान हो सकता है और हो भी रहा है। हालांकि किसानों को इससे बहुत नुकसान का सामना करना पर रहा है, कोई भी फसल अच्छी उत्पाद नही दे रही हैं।
इस संदर्भ मे किसान लोगों के विचार कुछ इस कदर आए सरैया के राजू सिंह बोलते है कि देश के कई राज्यों मे और बिहार के कई जिलों में लोग कहीं बाढ़ का, तो कहीं सुखार का सामना कर रहे है। बारिश नही होने के वजह से हमारी फसल भी बर्बाद हो रही है, इससे साग-सब्जी के कीमतों मे वृद्धि हो गयी है और आगे बढ़ने की संभावना है।
सरैया के ही रामबाबू सिंह कहते है कि- बारिश नहीं होने कि वजह से किसानों कि रोजी-रोटी ठप हो रही है। सरकार पैसे दे रही है मगर उसके लिए भी लंबी प्रक्रिया है और एक बार मे पैसे नहीं देती है। आगे कहते है कि एक बहुत पुरानी कहावत हैं “सावन से भादों दूबर (कमजोर)”। वही अभी कुछ दशकों से ये कहावत देखने को भी मिल रहा हैं।
पुनपुन के राकेश कुमार बताते है कि- कम मात्रा मे बारिश होने के कारण हमें सुखार का सामना करना पर रहा हैं, मक्का, धान या फिर हरी साग–सब्जी हो कोई भी खेती अच्छी उपज नही हो रही है। इससे नुकसान का सामना भी करना पर रहा है मगर प्रधानमंत्री योजना के तहत हमें पैसे मिल रहे है।
बरसात के दिनों में धनरुआ, नौबतपुर, पुनपुन, संपतचक, फुलवारीशरीफ, पालीगंज सहित कई जगहों पर पेयजल का संकट बना हुआ है। लोग बाल्टी लेकर पानी के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। तालाब बरसात के सीजन में भी सूखे रह गए हैं।
बीते एक दशक में लगातार सामान्य से कम और असामान्य बारिश होने का असर इस बार अधिक देखने को मिल रहा है।
नेहा निधि