जब हम छोटे होते है तब हमारे दादा- दादी, नाना- नानी हमारे लिए कितने ख़ास होते हैं। मगर जैसे- जैसे हम बड़े होते जाते है हमारे बीच वक़्त के साथ दूरिया बढ़ते जाती हैं। हमारे सोच टकराने लगती है, और एक दूसरे के बीच इतनी दूरिया कब आ जाती है कि पता ही नही चलता। समय के साथ हम अपने दादा-दादी, नाना- नानी को आदर देना भूल जाते है, अनजाने मे उनका अपमान कर जाते हैं ।
सरैया के हरिनारायण सिंह कहते है कि उनको अपने पोता-पोती के साथ वक़्त बिताना पसंद हैं। उनके पोता- पोती जब भी आते है तो पूरा समय उन्ही को देते है। मिस्टर सिंह आगे कहते है कि- “मुझे अपने बच्चों के साथ वक़्त बिता कर ऐसा लगता है मानो, मै अपना बचपन देख रहा हू” उनकी मासूमियत जीवन के पाठ सीखाती है।
बैजलपुर निवासी भरत सिंह का कहना है कि उनका पोता पूरे दिन उन्ही के साथ रहता हैं, अपने माता-पिता के पास या काही और नही जाना चाहता है। मिस्टर सिंह जोड़ते हुये बोले कि उनका भी मन उनके पोता के बिन नही लगता हैं, जहाँ भी जाते है अपने पोता को ले कर जाते हैं।
साक्षी जो मानपुर की रहनेवाली है वह कहती है कि- उसके दादा- दादी जहाँ भी जाते है उसको अपने साथ लेकर जाते हैं, और उसकी हर ख्वाइश को पूरी करते है। “ मुझे अपने दादू- दादी के साथ वक़्त बिताना अच्छा लगता है।
वहीं बैजलपुर के आदित्य बोलते है कि- “मेरी दादी, दादी नही मेरी माँ थी”। मै बचपन से उन्ही के साथ ज्यादा समय बीताते था, मुझे दादी के होते हुये अपनी माँ से उतना लगाओ कभी नही हुआ। कुछ भी होता था तो मै दादी के पास जाता था लेकिन ये खुशी मेरे ज्यादा समय तक की नही थी। दादी के जाने के बाद ऐसा लगता है मानो मै अनाथ हो गया, ये कहते हुये उनके जज़्बात आखो से छल्क आए।
हर कोई अपने दादा-दादी, नाना-नानी से खुश नही होता है, बच्चो की बचपना उन्हे यह देखने मे मजबूर करती है की किसी न किसी के नज़र मे उनका प्यार कम हैं।
सोनपुर के अंशु अपने दादा से खुश नही है उनको लगता है कि उनके दादा उनको उनके दूसरे भाई-बहनों से कम मानते हैं उनको प्यार नही करते है, उनकी बात नही सुनते है। कुछ खरीदने बोलो तो टाल देते है मगर दूसरे भाई- बहनो कि एक बात पर उनकी इच्छा पूरी कर देते हैं।
तो दूसरी तरफ सोनपुर कि ही आसी कहती हैं कि- वो बचपन अपना नाना घर मे बिताई हैं मगर कभी ये अहसास नही हुआ कि अपने घर मे नही नानी घरमे हु। आगे जोड़ते हुये कहती है कि मुझे दादी घर के साथ- साथ नानी घर मे भी उतना ही प्यार मिला दादू-नानु सभी से, और सभी एक बार मे ही सारी ख्वाइशे पूरी कर देते थे।
दादा-दादी और नाना – नानी हमारे घर के बुजुर्ग है। हमे उनका आदर करना चाहिए। सय के साथ आते हुये बदलाव मे विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस हमारे समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है और यह दिन वार्षिक रूप से होनी मनानी चाहिए न कि केवल वरिष्ठ नागरिक दिवस पर। हमारे बुजुर्गों को विशेष महसूस कराने के लिए सिर्फ एक ही दिन नही बल्कि हर दिन महत्वपूर्ण है।
नेहा निधि