स्टील उद्योग में इन दिनों सुस्ती होने की वजह से टाटा स्टील, जेएसडब्लू और आर्सेलर मित्तल जैसी बड़ी कंपनियों ने अपने उत्पादन में कटौती की है। इस कारण सैकड़ों छोटी कंपनियां या तो बंद हो गई हैं, या फिर उनके यहां उत्पादन ठप पड़ा है।
50 हज़ार लोगों को बेरोज़गारी का सामना करना पड़ रहा है। इनमें ज्यादातर लोग दिहाड़ी पर काम करने वाले मज़दूर या छोटे कर्मचारी हैं। ऐसे में क़रीब 90 फ़ीसदी लोग बेरोज़गार हो गए हैं। उनही मे से एक है मुकेश राय।
मुकेश राय (52) अपना पैतृक घर छोड़कर साल 1989 में बिहार में टाटा (जमशेदपुर) आए। यहां उन्होंने लेथ (लोहा काटने की मशीन) का काम सीखा और दैनिक मज़दूरी करते-करते वाई-6 कर्मचारीबन गए। (जो स्थायी नहीं हैं लेकिन उन्हें रोज़ काम मिलता है। उन्हें पीएफ़ और इएसआई जैसी सुविधाएं भी मिलती हैं)
पिछले दो महीने से वो बेरोज़गार हैं। उनकी कंपनी ‘माल मैटेलिक’ में उत्पादन बंद है। आठ जुलाई को वो आख़िरी बार काम किए पर उन आठ दिनों का पैसा करीब 3500 रुपये भी उन्हें नहीं मिले। उनकी पत्नी रिंकू देवी ने कुछ पैसे बचाकर रखी थी पर वे पैसे भी अब ख़त्म हो गए और उन्हें अपने गहने गिरवी रखकर उधार लेना पड़ा, ।
मुकेश राय ने कहा, “ठेकेदार का कहना है कि टाटा स्टील के उत्पादन में कटौती की जा रही है। इस कारण उससे जुड़ी कंपनियों में काम बंद हो गए हैं। जुलाई बीता, अगस्त भी बीता। अब सितंबर-अक्टूबर में भी काम मिलने का आसार नहीं”, बीबीसी के मुताबिक।
इंदर अग्रवाल, आदित्यपुर स्मॉल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष कहते है अकेले आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया में कम से कम 30 वैसी कंपनियों में ताला लटक गया है, जो इंडक्शन फर्नेस के काम में लगी थीं। इसका एक कारण झारखंड सरकार की ओर से बिजली के दर में अचानक की गई 38 फ़ीसदी की बढ़ोतरी भी है.
रांची और रामगढ़ की भी कई कंपनियों में उत्पादन ठप है। लघु उद्योग भारती के अध्यक्ष रुपेश कटियार के मुताबिक़, सिर्फ़ झारखंड में 70 हजार से अधिक लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर बेरोज़गार हो गए हैं।
यह हालत देश के सिर्फ इस राज्य की नहीं बल्कि दूसरे राज्यों की भी है। स्टील के उत्पादन में लगी तमाम कंपनियां इस मुश्किल से उबरने का रास्ता तलाश रहे है। M
झारखंड इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (जियाडा) के उद्योग प्रसार पदाधिकारी अनिल कुमार ने बताया कि टाटा समूह की कंपनियों में उत्पादन कम होने के कारण यह हालत हुई है। उनकी डिमांड घट गई है।
आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया स्मॉल इंडस्ट्री एसोसिएशन (एसिया) के सचिव दीपक डोकानिया ने कहा कि ताजा स्लोडाउन की मुख्य वजह नक़दी की कमी है। उन्होंने कहा, “बाज़ार में पैसा नहीं है। जब पूंजी ही नहीं रहेगी, तब उत्पादन कैसे होगा। प्रोडक्शन में कटौती के कारण मुझे भी अपनी कंपनी बीएमसी मेटलकास्ट लिमिटेड के कुल 400 कर्मचारियों में से 50-60 को बैठाना पड़ा है। यह ग़लत है, लेकिन हमारे पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है।”
टाटा स्टील के सीईओ टीवी नरेंद्रन ने कहा कि स्टील उद्योग में स्लोडाउन दरअसल, ऑटो सेक्टर से जुड़ा है।
उन्होने कहा, स्टील सेक्टर की मुख्य डिमांड ऑटो इंडस्ट्री और कंस्ट्रक्शन सेक्टर (रियल एस्टेट) से आती। ऑटो सेक्टर के उत्पादन में क़रीब 12 फ़ीसदी की गिरावट आई है। इससे ऑटोमोटिव स्टील मार्केट प्रभावित हुआ है। क्योंकि, भारत में कुल स्टील उत्पादन का 20 फ़ीसदी हिस्सा ऑटो इंडस्ट्री के उपयोग में लाया जाता है और अब बात करे कंस्ट्रक्शन का तो कंस्ट्रक्शन को लेकर न तो सरकार की तरफ़ से कोई बड़ा प्रोजेक्ट लाया जा रहा है, न प्राइवेट सेक्टर से। ऐसे में स्टील का उत्पादन घटना स्वाभाविक बात है.
झारखंड के बोकारो में सेल का स्टील प्लांट हैं। यहां के कुछ कर्मचारियों ने भी काम नहीं मिलने की शिकायत की है.
स्टील के स्लोडाउन का ज़्यादा असर घरेलू मार्केट पर पड़ रहा है और इस स्लोडाउन से उबरने में पांच-छह महीने लग सकते हैं।