क्या हमारे कदम तानाशाही की ओर बढ़ रहे?

क्या हमारे कदम तानाशाही की ओर बढ़ रहे?

हैदराबाद, बक्सर, माल्दा, सीतामढ़ी और फिर उन्नाव में अथवा देश के किसी अन्य हिस्से में भी बलात्कार के बाद पीड़िता की जिंदा जलाकर हत्या या मार डालने की मिलती जुलती घटनाएं रोंगटे खड़ा करने, सिहरन पैदा करने के साथ ही लगातार हमारे सभ्य समाज का सदस्य होने पर सवाल खड़े कर रही हैं। हम एक हत्यारे और बलात्कारी समाज में रह रहे हैं! बर्बर बलात्कारी-हत्यारों के मन में हमारी पुलिस और कानून व्यवस्था का जैसे कोई डर ही नहीं रह गया है।

इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़ दें तो बलात्कार और हत्या की शिकार हमारी तमाम बहन, बहू और बेटियों को अदालतों से शीघ्र न्याय और बलात्कारी हत्यारों को कठोरतम दंड नहीं मिल पाने का भी एक कारण हो सकता है कि इन घटनाओं को लेकर आक्रोशित समाज बड़े पैमाने पर हैदराबाद में जन भावना अथवा जन दबाव के नाम पर पुलिस के द्वारा मुठभेड़ के नाम पर बलात्कार और हत्या के चारों आरोपियों को मार देने का समर्थन कर रहा है।

लेकिन जन दबाव और जनभावना पर आधारित ‘मुठभेड़’ भविष्य के लिए खतरनाक संकेत भी हो सकता है। इसे न्याय कतई नहीं कह सकते। हम बिना किसी भेद-भाव के सभी जघन्य बलात्कारी-हत्यारों को उनके किए के लिए अदालतों से शीघ्रातिशीघ्र कठोरतम दंड दिए जाने के पक्षधर हैं।

मृत्युदंड का हम समर्थन नहीं करते लेकिन जब तक हमारे संविधान और न्याय व्यवस्था के तहत मृत्युदंड का प्रावधान है, इन जघन्य बलात्कारी-हत्यारों को फांसी दी जानी चाहिए। शीघ्र न्याय के लिए त्वरित अदालतों (फास्ट ट्रैक कोर्ट्स) का गठन किया जाना चाहिए जिनसे पीड़िता को समय से न्याय और गुनहगारों को कठोरतम दंड मिल सके।

लेकिन त्वरित न्याय के नाम पर पुलिस और भीड़ को ‘न्याय’ करने या सजा देने का अधिकार दिए जाने के हम सख्त खिलाफ हैं। पुलिसिया अथवा भीड़तंत्र का न्याय तानाशाही की ओर ले जाएगा जिसका शिकार कोई भी हो सकता है।

जयशंकर गुप्त

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