यही है,भारत का दुर्भाग्य। एक सिनेमा के लिए इतनी मारामारी, इतना हंगामा।
लेकिन रसातल में जा रहे भारत को जुल्मी तानाशाह से बचाने, बेकारी महंगाई, सरकारी लूट घपला घोटालों, ईवीएम की हेराफेरी, जनादेश की लूट को रोकने के लिए ऐसी भीड़ कभी सड़कों पर नहीं आती है।
जुल्मी लुटेरों के खिलाफ ऐसी कोई बगावत, कोई क्रांति सड़कों पर नहीं होती है। सिर्फ फिल्म के विरोध या समर्थन में नंगा नाच होता है।
भारत की युवा पीढ़ी का दिमाग वास्तव में बिल्कुल शुन्य हो गया है। सिनेमा- छोकड़ी -क्रिकेट और फैशन इन्हीं पर वे रात दिन लगे रहते हैं।
देश की मूल समस्या पर किसी धरना प्रदर्शन तक में शामिल नहीं होते। इसी का फायदा लोकतंत्र के हत्यारे उठाते हैं।
वर्तमान शासक, कारपोरेट घराने मुनाफा खोर कारोबारी और धुर्त राजनेता उठा रहे हैं । जनता को छोटी-छोटी बातों पर बांट दिया है।
सरकार के विरोधी लोग सिर्फ सरकार को चिढ़ाने के लिए जमकर फिल्म देख रहे हैं। और समर्थक अपनी बेकारी को भूल कर महज ₹500 की दिहाड़ी पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। शर्म करो नौजवानों। असली लुटेरों ,असली रिंग मास्टर असली मदारी को पहचानों। वही मदारी दोनों जनता को फंसा कर मजे ले रहा है।
उदयन राय , पटना (सोश्ल मीडिया पर)