अभी दुबई में हूं, अपनी बेटी-दामाद के पास. गजब का देश है. संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के सात प्रदेशों में से एक दुबई. यह वाकई एक ग्लोबल सिटी है. बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं.
साफ-सफाई और व्यवस्था के साथ स्व-अनुशासन को देख कर अचरज होता है कि इतने भारतीय यहां हैं. भारत के बारे में लोग खूब बात करते हैं. यहां रहनेवाले भारतीतीयों में से बहुतेरे लोग भारत को लेकर बेहद फिक्रमंद हैं.
22 जनवरी को लेकर उनकी चिंता और बढ़ी है. पड़ोस में रहनेवाले मुरादाबाद निवासी एक प्रौढ़ ने कहा- ‘दुनिया आगे जा रही है, लेकिन भारत पीछे जा रहा है. यहां रह रहे लोगों को भारत की चिंता है.’ अयोध्या को लेकर वे पूरी तरह निरपेक्ष लग रहे हैं. कहीं कोई उत्साह या उत्सुकता नहीं, बल्कि एक किस्म की चिंता ही सामने आती है.
अगले महीने की 12 तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अबू धाबी आनेवाले हैं. वहां वह स्वामी नारायण संस्था द्वारा बनाये जा रहे मंदिर का उद्घाटन करेंगे. इस मंदिर के लिए संयुक्त अरब अमीरात के शासक ने 17 एकड़ जमीन दी है.
मंदिर के उद्घाटन से पहले 13 फरवरी को अबू धाबी के स्टेडियम में ‘अहलान मोदी’ (नमस्ते मोदी) नामक कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है. इसमें संघ समर्थक समूह सक्रिय है. वे साधन संपन्न भी हैं. इसमें शामिल होने के लिए यहां रहनेवाले (भारतीय) लोगों का रजिस्ट्रेशन कराया जा रहा है. कोई प्रत्यक्ष दबाव तो नहीं, मगर ऐसा माहौल बनाया जा रहा है, जिससे लोग मनोवैज्ञानिक दबाव महसूस कर रहे हैं. रजिस्ट्रेशन के लिए जो सूचनाएं मांगी जा रही हैं, उनमें पासपोर्ट नंबर, आधार नंबर और भारत में रह रहे अपने परिजनों का विवरण भी शामिल है.
दुबई में जिन कुछ भारतीयों से बातचीत होती है, वे कहते हैं कि एक अरब देश में भव्य हिंदू मंदिर बन गया है. भारत के प्रधानमंत्री उसका उद्घाटन करेंगे. इस मौके पर हिंदुओं की भीड़ जुटेगी, सारे कर्मकांड होंगे, लेकिन कोई तनाव नहीं है. यहां के मूल निवासियों को कोई परेशानी नहीं है. दूसरी ओर भारत में लगातार अल्पसंख्यकों को डराया-धमकाया जा रहा है. हर मसजिद की नींव खोद कर मंदिर के अवशेष खोजने का अभियान चल रहा है. ऐसे लोग अबू धाबी में मंदिर निर्माण को उस देश की उदारता बता रहे हैं. लेकिन भारत के लोग इसे ‘सनातन’ धर्म का प्रभाव-विस्तार बता रहे हैं!
यह देख कर आश्चर्य होता है कि यहां कोई घोषित लोकतांत्रिक या सेकुलर व्यवस्था नहीं है, बावजूद इसके व्यवहार में पूरा सेकुलर और लोकतंत्र है. कहीं कोई अफरा-तफरी या अव्यवस्था नहीं है.
शाही परिवारों को कुछ विशेषाधिकार होंगे, लेकिन आम तौर पर सभी नागरिक बराबर हैं. विदेशियों और इतर धर्म के लोगों के साथ कोई भेदभाव नहीं होता है. मुस्लिम देश कहते ही एक बंद और सब्कीर्ण समाज की धारणा बनती है, लेकिन यहां उसका नामोनिशान नहीं है.
शहर में घूमते हुए कोई डर नहीं. सुरक्षा चुस्त और भारतीय-पाकिस्तानी इतने कि एकदम लगता है, मानो अपने ही देश में हों. पाकिस्तानी या बांग्लादेशी हम भारतीयों से (किसी धर्म के हों) ऐसे मिलते हैं, मानो पुराने रिश्तेदार हों. मेरी बेटी का पड़ोसी एक पाकिस्तानी परिवार है. उसके दो बच्चे हैं. वे बच्चे मेरी नतिनी के दोस्त हैं. दोनों परिवार हर शनिवार-रविवार को साथ घूमने-पिकनिक करने जाता है, दो-तीन बार तो हम भी शामिल हुए.
कितना सहज और खुशनुमा माहौल है यहां, जबकि भारत और पकिस्तान के रिश्ते सहज नहीं हैं. भारत में तो भाजपा के हर आलोचक को पाकिस्तान जाने की नसीहत दी जाती है. मगर यहां दोनों देशों के लोग एक हैं. भाषा की नजदीकी के अलावा भी सच यह है कि आम आदमी सहज और मिल कर रहना चाहता है. अन्य देशों को लोगों के साथ भी सबों का रिश्ता अपनेपन का ही है. सचमुच, एक उदार देश है यूएई और सही मायनों में ग्लोबल सिटी है दुबई.
यशोनाथ झा
(सोश्ल मीडिया पोस्ट)