हम पुरुष कैदियों की सफलता की कहानियां तो सुनते हैं, जिनहे पुनर्वास और व्यावसायिक कौशल का मौका दिया जाता है , लेकिन महिलाओं के लिए ऐसा शायद ही कभी सुना गया हो। महिला कैदियों को सभी वर्गों में नजरअंदाज कर दिया जाता है।
सीएचआरआई (कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव) ने पाया कि जब जेलों में भीड़-भाड़ होती है, तो महिलाओं को पुरुषों के साथ जगह साझा करने के लिए मजबूर किया जाता है। वे सर्दियों में भी उचित बिस्तर के बिना, फर्श पर सोने के लिए मजबूर होते हैं।
एमपीएम (मॉडल जेल मैनुअल जेलों के संचालन पर बुनियादी दिशा-निर्देश बनाता है, जिसमें कहा गया है कि राज्यों को अपने स्वयं के जेल मैनुअल में उन निर्देशों को पालन करना होगा) महिला डॉक्टरों, अधीक्षकों, गर्भवती महिला की विशेष देखभाल और नियमित रूप से स्वास्थ्य जांच के लिए सुविधा प्रदान करता है। अधिकांश जेलों में, ये सभी सुविधाएं प्रदान नहीं की जाती हैं। कई जेलों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कम मात्रा में भोजन मिलता है। पूरे भारत में महिला कैदियों से निपटने के लिए कोई सुसंगत नीति नहीं है।
यह नोट करना महत्वपूर्ण है कि भारत की महिला जेल की आबादी पिछले 15 वर्षों में 61% बढ़ी है, जबकि पुरुष दर 33% है। फिर भी, महिलाओं के लिए बुनियादी ढांचा अपर्याप्त और कमजोर है। जेलों में महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी ध्यान नही दी जाती है। एक अध्ययन में पाया गया कि कम से कम 1.2% महिला कैदी मानसिक बीमारियों से पीड़ित हैं, जिनका इलाज शायद ही कभी किया जाता है क्योंकि शायद ही कोई मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ उपलब्ध है । स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, जेलों मे उचित स्नान सुविधाएं तक भी उपलब्ध नहीं हैं।
बच्चे केवल छह साल की उम्र तक महिला कैदियों के साथ रह सकते हैं। इसका मतलब यह है कि महिला अक्सर अपने बच्चे या बच्चों के बारे में सोचते हुए, आघात सहती है। कई महिलाओं को अपने कानूनी अधिकारों के बारे में बहुत कम जानकारीहोती है , वे शायद ही कभी कानूनी सहायता प्राप्त कर पाते हैं।
जेल में स्थिति सुधारने की निश्चित जरूरत है। जेलों में खुली जेल और कानूनी सहायता के लिए अधिक पहुंच का विचार महिलाओं की बहुत सारी समस्याओं को सुधारने का काम करेगा। लेकिन अभी के लिए, ऐसा लगता है कि प्रणाली महिला कैदियों को अनदेखी कर रही है।