अनुवांशिक बीमारियों को एक कलंक की तरह समझा जाता है :निशा

अनुवांशिक बीमारियों को एक कलंक की तरह समझा जाता है :निशा

लैमेलर इचथ्योसिस (बीमारी) से ग्रसित निशा को उनके जन्म देने वाले माता-पिता ने छोड़ दिया था और अलोमा एक डॉक्टर हैं ने उन्हे एक नई जिंदगी दी।

19 साल पहले अलोमा लोबो पहली बार निशा से बेंगलुरु में मिली थीं। निशा अनाथालय में रहने वाले दूसरे बच्चों से बिल्कुल अलग दिखती थीं। एक दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी के चलते उनकी पलकें नहीं थीं और त्वचा बहुत ज्यादा रूखी-सूखी थी, कोई भी उसे गोद नहीं ले रहा था।

लेकिन अलोमा और उनके पति डेविड ने महसूस किया की निशा को प्यार की सख्त जरूरत थी।

अलोमा कहती हैं, “हमारी दूसरी बेटी ने उसे उठा लिया, उसे गले लगाया और कहा- ‘मां… चलो इसे घर ले चलते हैं’, और हमने ऐसा ही किया।”

निशा को लैमेलर इचथ्योसिस नाम की बीमारी है। इस बीमारी में इंसान की त्वचा मछली की त्वचा की तरह हो जाती है और यह शरीर से लगातार अलग होती रहती है।

निशा 20 साल की होने वाली है। आज एक खूबसूरत और खुशहाल ज़िंदगी जी रही हैं। अभी वो बेंगलुरु के एक कॉलेज से बिज़नेस स्टडीज की पढ़ाई कर रही हैं।  वो एक शिक्षक बनना चाहती हैं। वो खुद को दूसरों से अलग नहीं देखती हैं। इसकी वजह यह है कि उनके भाइयों और बहनों ने उनके साथ कभी भी भेद-भाव नहीं किया और संभवतः उन्हें इससे उबरने में मदद मिली।

पर स्कूल मे निशा को अलग-अलग प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ा। लोग उन्हें अजीब तरह से घूरते थे और बच्चे उनके साथ खेलना पसंद नही करते थे।

निशा कहती हैं, “जब भी मेरी त्वचा टूटती है तो मुझे काफी दर्द होता है लेकिन मैंने ऐसे ही पूरी ज़िंदगी जी है और इसलिए यह कुछ ऐसा है जिसकी आपको थोड़े वक़्त बाद आदत हो जाती है। “निशा याद करती हैं कि एक दफ़ा जब वो अपनी मां के साथ हवाई जहाज से यात्रा कर रही थीं तब उनके बगल के एक यात्री ने उनके साथ बैठने से इनकार कर दिया था और उन्हें विमान से उतारने की मांग करने लगा।

वो कहती हैं, “उन्होंने (एयरलाइन ने) माफ़ी के तौर पर मुझे बिज़नेस क्लास में जाने का अनुरोध किया।”

निशा बताती हैं कि जब भी कोई उनके साथ अजीब या ग़लत व्यवहार करता है तो वो भिड़ने की बजाय उससे दूरी बना लेती हैं।

निशा पूर्वाग्रह से लड़ना चाहती हैं। वो एक टीवी चैट शो और टेडएक्स में बोल चुकी हैं।

वो कहती हैं, “भारत में अनुवांशिक बीमारियों को एक कलंक की तरह समझा जाता है. परिवारवाले त्याग दिए जाते हैं।  मांएं दोषी करार दी जाती हैं और बच्चों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।”

“अगर एक डॉक्टर को पता चलता है कि गर्भावस्था में पल रहे बच्चे को अनुवांशिक बीमारी है तो वो गर्भपात की सलाह देता है जैसे कि इन बच्चों को इस दुनिया में आने का हक़ ही नहीं है।”

निशा आज एक खुशहाल युवती है और कॉलेज में पढ़ाई कर रही हैं. वो शिक्षक बनना चाहती हैं, हालांकि उसके पिता डेविड उन्हें पहले से ही एक शिक्षक मानते हैं।

डेविड कहते हैं, “मुझे लगता है कि उसने मेरे जीवन पर सबसे बड़ी छाप छोड़ी है। वो एक ऐसी शख़्स है जो प्रतिक्रिया नहीं देती है। वो हमेशा अपनी स्थितियों को संभालती है।  हमलोग मौसम, ट्रैफिक और ज़्यादा ठंड होने पर प्रतिक्रिया देते हैं लेकिन वो ऐसा नहीं करती है। वो हमेशा खुश रहती हैं।”

“अगर आप उसकी तस्वीरों के देखेंगे तो वो उसे हमेशा मुस्कुराता पाएंगे। उसकी मुस्कान में जीवन भर की खुशी होती है। मुझे लगता है कि वो एक अद्भुत शिक्षक है- मैंने उससे बहुत कुछ सीखा है।”