समाज मे सबको एक समान अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए। इस बात पर चर्चा तो खूब होती है, कुछ प्रयास भी होतें हैं, पर फिर भी भारत जैसे उदारवादी देश में मर्दों और महिलाओं को एक जैसे अधिकार नहीं हैं। कभी-कभी तो लगता है की महिलाओं का अधिकार कानून के कुछ पन्नों तक ही सिमित रह रह गए हैं। ये खाई बहुत गहरी है इसलिए इसे पाटने में और कितना समय लगेगा इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है।
हाल ही बिहार के पटना में एक नव-निर्मित गैर सरकारी संगठन बिहार विमेंस स्पोर्ट्स प्रमोशन एसोसिएशन ने अच्छी पहल की है। इस संगठन ने हाल ही में पटना के संत जेवियर्स कॉलेज दीघा में विमेंस फुटबॉल मैच का आयोजन करवाया था। इस आयोजन को काफी सफलता भी मिली है।
पर अब आपके मन में ये सवाल उठ रहा होगा की फुटबॉल और लड़कियों के अधिकार और सम्मान में क्या कनेक्शन है? तो जवाब यह है की फुटबॉल एक ऐसा खेल है जिसे भारत में परंपरागत लड़कों के खेल के रूप में ही जाना जाता रहा है। खासकर बिहार के परिपेक्ष में बात करें तो यहाँ लड़कियों का फुटबॉल खेलना जैसे आठवां अजूबा सा लगता है। कई लोग तो फुटबॉल को पहनावें से भी जोर देते हैं और उन्हें लड़कियों द्वारा छोटे कपड़े पहनना अच्छा नहीं लगता हैI कई माँ -बाप समाज क्या कहेगा या सोचेगा ये सोच कर अपने लड़कियों को फूटबाल खेलने से रोकतें हैं I ऐसे में अगर लड़किया घर से बाहर निकल कर बिना किसी रुकावट के फूटबाल खेलती हैं तो हम कह सकतें हैं की अब लड़कियों को सम्मान अधिकार मिल रहा है पर अभी ऐसा होता हुआ काफी मुश्किल दिखाई पड़ता है I बिहार में लड़कियों को खेल में प्रोत्साहित करने के लिए हाल ही में कई प्रयास हो रहें हैं।
इसी कड़ी में बिहार विमेंस स्पोर्ट्स प्रमोशन एसोसिएशन अपने कई सहायक गैर-सरकारी संगठनों जैसे – नारी गुंजन, इज़ाद और गौरव ग्रामीण महिला विकास मंच के साथ मिल कर बिहार में विमेंस फुटबॉल को बढ़वा देने के लिए काम कर कर रहा है।
जुलाई महीने की 3 तारीख को पटना शहर के दीघा स्थित संत जेवियर्स कॉलेज में विमेंस फुटबॉल मैच का आयोजन किया गया। यहाँ 2 फूटबाल के मुकाबले खेले गए जिसमे बिहार के अलग-अलग क्षेत्रों के 4 टीमों ने हिस्सा लिया। इस मुकाबले को देखने के लिए मैदान में 100 से भी ज्यादा लोग मौजूद थे। गौरतलब है की इन सभी टीमों के बच्चे दलित और अति पिछड़े मुस्लिम समाज से थे। इनके लिए फूटबाल एक खेल ही नहीं बल्कि इनके अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाला एक हथियार है।
बिहार विमेंस स्पोर्ट्स प्रमोशन एसोसिएशन ने लड़कियों को स्पोर्ट्स में प्रेरित करने के लिए जो कदम उठाये है वो वाकई में सरहनीय हैं। बिहार में भी कई लड़कियों के मन में ये सपना होता है की एक दिन अपने देश का प्रतिनिधित्व करें। इसी सपने को साकार करने के लिए बिहार विमेंस स्पोर्ट्स प्रोमोशंस एसोसिएशन अपने कई साथी संस्थाओं के साथ मिलकर काम कर रहा है।
यह काम 2 पालियों में होता है, पहला जमीन से जुड़े हुए गैर सरकारी संगठन जैसे – इज़ाद, नारी गुंजन और गौरव ग्रामीण महिला विकास मंच जैसे संगठन बच्चों को फुटबॉल खेलने के लिए प्रेरित करते हैं । और दूसरा काम होता है बिहार विमेंस स्पोर्ट्स प्रोमोशंस एसोसिएशन जो इन बच्चों को और आगे बढ़ाने के लिए काम करते हैं
पहला काम तो बिलकुल भी आसान नहीं होता है इज़ाद से जुड़ी हुई नुसरत जहां कहती हैं की लड़कियों को घर से बाहर निकालने का काम बेहद कठिन होता है। समाज के भय के वजह से कई लोग अपने बच्चों को खेलने से मना करते हैं पर फिर हम उन्हें समझाते हैं। खेल से होने वाले फायदों के बारे में बताते हैं, बच्चियों के सुरक्षा के गारंटी लेते हैं तब जाकर कहीं माता-पिता मानते हैं। बिहार में माता-पिता अपने बच्चों को खेल के तरफ भेजने में उतनी रूचि नहीं दिखाते हैं उसके बजाये अधिकतर लोग अपने बच्चियों को परमपरागत पढाई करने के लिए ही कहते हैं।
इस विषय पर सेंट्रल फॉर सोशल इक्विटी एंड इन्क्लूजन के सत्येंद्र कुमार कहते हैं की बिहार में लड़कियां स्पोर्ट्स में आगे नहीं हैं क्यूंकि यहाँ माता-पिता अपने बच्चों को खेल में आगे बढ़ाना नहीं चाहते। उसकी एक वजह यह भी है की शायद उनको लगता है की स्पोर्ट्स में लड़कियों का कोई भविष्य नहीं है। उन्होंने ने कहा की हमें पहल करनी होगी एक समाज के रूप में अपने लड़कियों को बढ़ावा देना होगा तभी जाके स्थिति बदलेगी।
बिहार में सरकार भी खेलों पर कुछ खास ध्यान नहीं देती पर बिहार विमेंस स्पोर्ट्स प्रमोशन एसोसिएशन जैसी संगठनों के आगे आने से ऐसा लगता है की शायद अब स्थिति बदलेगी और अधिक संख्या में लड़किया बाहर आएँगी। और एक दिन अपना ही नहीं बल्कि पुरे देश का नाम फक्र से उच्चा करेंगी।
रोहित कुमार
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