आखिर चुनाव क्यो किए जाते है ? जो पार्टियां सत्ता मे नहीं है, उनकी शिकायत यह रहती है की सरकार कुछ नही कर रही है, इससे हटाना जरूरी है। सरकार बदल जाती है तो दूसरी पार्टियां यही राग अलापने लगती है। जिस आम आदमी का नाम लेकर सब होता रहता है, उसका कही अता-पता नही, सिवा उस दिन के, जिस दिन उन्हे वोट देना रहता है। जो लोग वोट मांगने आते है वोट मिलने के बाद आसानी से नही मिलते, वे अपने- अपने धंधे मे लग जाते है। फिर कभी जब वोट का मौका आता है तो दुबारा दर्शन देते है।
तो क्या पिछ्ले इखत्तर सालो मे तरक्की नही हुई? ऐसा नही कहा जा सकता। देश के अनेक क्षेत्रो मे अदभूत उन्नति हुई है। विकास के कारण ही हमारा भारत एक ग्लोबल विल्लेज मे तब्दील हो गया है। फिर भी ऐसा क्यो है की लोग भूखे मरते है ? देश के कई गाव मे पीने का स्वच्छ पानी नही है। मिलो दूर जा कर औरतों को घड़ा भर कर लाना पड़ता है। बच्चे क्यो कुपोषण के शिकार है। कई लोग क्यो बीमारियों के चपेट मे आ कर दम तोड़ देते है। कई के घरो मे बिजली क्यो नही पाहुचती? आज भी कई बच्चे क्यो स्कूलो से दूर किसी कारखाने मे काम कर अपनी मासूमियत खोते नज़र आते है । क्यो आज भी लोग अपने बुनियादी सुविधाओं और जरूरतों से आज भी वंचित है। चुनाव आते ही पार्टियां फिर से उन्हे कहती है हम आपके कष्टों का निवारण करेंगे आप हमारे वोट बैक बने रहे तथा 500 रुपये और दो वक्त के खाने का लालच देकर वोट ले लेते है।
आखिर इस विडम्बना का रहस्य क्या है की देश आगे बढ़ रहा है और लोग पीछे ही रह जा रहे है। अमीर और गरीब के बीच की खाई गहराती जा रही है। खुशहली और निर्धनता के बीच की खाई गहराती जा रही है। खुशहाली के जो उपाए किए गए, वे इन लोगो से नज़रे चुराकर आगे बढ़ गयी। उन्होने खुशहालों के घर खुशहाली बढ़ा दी। नई टेक्नालजी गरीब से कतराकर आगे बड़ती गई। हमारा भारत इसी दुर्दशा का हिस्सा बना हुआ है। क्या ये महज़ वोट बैंक है और कुछ नहीं, क्या देश के नेता कुछ समय के लिए अपनी राजनीति ताक पर रखकर इनके लिए ईमानदारी से काम नही कर सकते?