एक दृश्य16 जून की सुबह मै अपने गाँव मे थी वहाँ कुछ बच्चे चापाकल स्नान कर रहे थे उसी वक़्त एक ब्राह्मण आया और उन बच्चो को हटने बोला फिर चापाकल को इस्तेमाल करने से पहले बच्चों की जाति पुछी ।
यह कोई बड़ी बात नहीं है पर यह छोटी सी घटना मुझे यह सोचने के लिए मजबूर करता है जहाँ भीषण गर्मी मे लोग पानी की किल्लत झेल रहे है वही कुछ लोग जात, धर्म, छुआ –छूत से ऊपर नहीं बढ़ पाये है। हम अपनी सोच और मानसिकता के कारण अभी भी पीछे छूट गए है।
भारतीय इतिहास अति प्राचीन है,जिसकी विशेषताएँ वेदो मे भी मिलती है। उस काल का एक निच्यित स्वरूप था एवं उसकी कुछ मूल विशेस्ताए रही है। भारतीय संविधान मे छुआ-छूत, अश्पृयष्टा जैसे भेद – भाव के खिलाफ शख्त नियम बनाए गए है एवं सभी को एक समान माना गया है।
इसके बावजूद समाज मे आज भी भेद –भाव , छुआ –छूत देखने को मिलता है। क्या छुआ –छूत के नियम सिर्फ कागज़ो पर है?
भारत तकनीकी विकाश मे तो आगे बढ़ रहा है। दुनिया को टक्कर देने को तैयार हो रहा है मगर अभी भी कुछ छोटी सोच के कारण आगे नही बढ़ पा रहा। छुआ – छूत, भेद – भाव ये सब उच्च जाति-माने जाने वाले मे अधिक पाया जाता है वो इन सभी बातो पर अधिक ध्यान देते है।
भारतीय प्राचीन समाज और वेदिक विशेषतए जो भी थी वो उस समय मे थी लेकिन आज के विकाशित समाज में निम्न जाति वाले के साथ ऐसा वहवहार शोभा नही देता। यहाँ सभी मानव पहले है इसलिए मानवता का ध्यान मे रखते हुये हमे इन सामाजिक बुराइयों को विकसित होने से रोकना होगा और सभी वर्णो के प्रति समान व्यवहार प्रदान करना होगा।
नेहा निधि