जजों की नियुक्ति पर चिंतन

जजों की नियुक्ति पर चिंतन

जजों की नियुक्ति की चालू व्यवस्था द्वारा सुझाए गए नामों में नापसंद नाम को सरकार स्वीकृति देने में विलंब कर सकती है।

एक साल पहले एक अधिवक्ता ( मुस्लिम) के नाम की स्वीकृति में साल भर लग गया।

एक बार इंदिरा जी ने महाराष्ट्र के एक सज्जन का नाम जजों की सूची से इसलिए हटाया क्योंकि उनके पिता जी शाखा (आरएस एस ) में गए थे।

आज भी सरकार सुझाए गए नामों की आईबी से जांच कराती है। जांच के आधार पर सरकार सुझाव गए नामों में किसी को स्थगित, विलंब या सुझाव लौटा सकती है।


आप चालू व्यवस्था को बदलने की बात भाजपा सरकार के रहते नहीं करें तो कृपा होगी। कृपया वर्तमान दौर का ख्याल रखें। सरकार कैसे – कैसे लोगों को राज्यपाल बनाती है यह तो हम देखते ही आ रहे हैं।

कभी सरोजनी नायडू और जाकिर हुसैन जैसे लोग थे । आज की बात तो कुछ और है। हां, कांग्रेस ने भी रोमेश भंडारी जैसों को राज्यपाल बनाने की दुष्टता की थी पर आज की केन्द्रीय सत्ता को जजों की नियुक्ति का अधिकार मिल जाए तो वही शाखा वाले ही नियुक्त होंगे।

कृपया सरकार की बेचैनी का भागीदार न बनें। यह बेचैनी संसद की गरिमा या अधिकार के लिए नहीं बल्कि इरादा है शाखा के सदस्यों को जज बनाना ताकि हिन्दू राष्ट्र घोषित करने के राजकीय आदेश को अदालत में चुनौती नहीं दी सके।

लेखक: पंकज , बेतिया।