ये डॉक्यूमेंट्री डॉक्यूमेंट्री का शोर क्यों है भाई!

ये डॉक्यूमेंट्री डॉक्यूमेंट्री का शोर क्यों है भाई!

सरकार हलकान, पर चाटुकारों की कमी नहीं गालिब!

आखिर उस या ऐसी किसी डाक्यूमेंट्री में गुजरात दंगों के बारे में ऐसा नया क्या कहा बताया जा सकता है, जो खबरों में थोड़ी बहुत भी रुचि रखने वाला नहीं जानता!

उन दंगों में गुजरात (मोदी) सरकार, संघ परिवार की भूमिका के बारे में ही कोई क्या नया बतायेगा? वह सब तो ये लोग खुद लगभग खुल कर बताते रहते है। कुछ महीने पहले ही- गुजरात में विधानसभा के चुनाव प्रचार के दौरान- भारत के गृह मंत्री अमित शाह, जो खुद गुजराती हैं और दंगों के समय भी इनकी विशेष हैसियत थी, ने खुले आम कहा था कि 2002 में हमने ‘दंगाइयों’ को जो ‘सबक सिखाया’, उसी कारण गुजरात में स्थायी शांति बनी हुई है। अब किसी को कैसा सबूत चाहिए।

कुछ लोग डॉक्यूमेंट्री निर्माता की पहचान खोज कर उसकी मंशा पर सवाल कर रहे हैं। कुछ तो पूरे इंग्लैंड और तमाम अंगरेजों को ही भारत का शत्रु घोषित कर रहे हैं- कि ये तो ऐसे ही हैं। लेकिन जरा कल्पना करें कि इससे इंग्लैंड का कोई पत्रकार फिल्मकार यदि आज कांग्रेस, राहुल गांधी या नेहरू की आलोचना में कुछ लिख या कह दे, तो इनकी क्या प्रतिक्रिया होगी? क्या तब भी वह भारत का अपमान माना जायेगा, जैसा कि हमारे एक केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने उस डाक्यूमेंट्री को लेकर कहा है? अपने मोदी जी ही तो अपनी विदेश यात्राओं के दौरान भारत की पूर्व सरकारों और उनके नेताओं के बारे में उलटा-सीधा बोलते रहे हैं।

सच तो यह है कि सांप्रदायिकता का आरोप लगने से इनको न तो कोई कष्ट होता है, न ही नुकसा। इस आरोप से इनकी हिंदू हितैषी छवि स्थापित होती है, साथ ही मुसलिम विरोधी की भी। यही तो इनकी पहचान (यूएसपी) है, जिससे वोट मिलता ह। फिर भी प्रकट में ऐसे आरोप को स्वीकार कर नहीं सकते, तो नाराज होने का दिखावा भी करना पड़ता है। हां, विदेशों में ये अपनी उस छवि पर इतरा नहीं सकते। और बीबीसी की डाक्यूमेंट्री से कष्ट इसलिए भी है कि उसकी पहुंच भारत तक सीमित नहीं रह सकती।

तो भारत सरकार ने त्वरित कार्रवाई करते हुए न सिर्फ उस डॉक्यूमेंट्री को सोशल मीडिया पर ब्लॉक कर दिया है, बल्कि कोई मैसैज-कमेंट करने को भी प्रतिबंधित कर दिया है.
हालांकि एक ऑनलाइन पत्रिका स्क्रॉल (20 जनवरी) के मुताबिक “बीबीसी का कहना है कि 2002 के गुजरात दंगों में मोदी की भूमिका पर बनी डॉक्यूमेंट्री पर गहन शोध किया गया है. उसके एक प्रवक्ता ने कहा कि बीबीसी ने भारत सरकार से अपना पक्ष रखने के लिए कहा था, लेकिन उसने जवाब देने से इनकार कर दिया..”

भारत के सम्मानित पत्रकारों में से एक, ‘द हिंदू’ के पूर्व एडिटर-इन-चीफ एन राम ने सरकार द्वारा यूट्यूब और ट्विटर पर बीबीसी के वृत्तचित्र ‘इंडिया : द मोदी क्वेश्चन’ को ब्लॉक करने के प्रयास को सेंसरशिप के समान बता कर आलोचना की है.

इस बीच केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बीबीसी की नई डॉक्यूमेंट्री को लेकर कहा है- ‘ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर नहीं, बल्कि भारत पर हमला है’ उन्होंने कहा कि बहुत सारे लोग इस बात को पचा नहीं पा रहे हैं कि भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है…’ धन्य! वैसे यह पहली बार नहीं है कि भाजपा के किसी नेता या समर्थक ने नरेंद्र मोदी को ‘भारत का पर्याय’ बताया है। इसके पीछे एक रणनीति भी होती है। इससे श्री मोदी की आलोचना को देश का अपमान बताना आसान हो जाता है, जैसा श्री प्रधान ने कहा भी है।

प्रसंगवश, इंदिरा गांधी के निरंकुश के दौर में उनके एक चाटुकार और कांग्रेस के बड़े नेता असम के पूर्व मुख्यमंत्री और बिहार के राज्यपाल रह चुके देवकांत बरुआ ने ‘इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा’ जैसा नायाब जुमला गढ़ा था। उन्होंने ही इंदिरा जी की आरती इस तरह उतारी थी- ‘तेरे नाम की जय, तेरे काम की जय; तेरे सुबह की जय, तेरे शाम की जय। ‘

जाहिर है, भारतीय राजनीति में चाटुकारों की भी कभी कमी नहीं रही है। वैसे यह सदाबहार प्रजाति तब अधिक फलती-फूलती है, जब सत्ता के शीर्ष पर कोई खुशामद पसंद व आत्ममुग्ध नेता होता है। इसलिए भी आज भारत की जमीन और राजनीति इस प्रजाति के लिए काफी उर्वर है।

श्रीनिवास

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