खतना की प्रथा, मानवाधिकार का उल्लंघन : सुप्रीम कोर्ट

खतना की प्रथा, मानवाधिकार का उल्लंघन : सुप्रीम कोर्ट

दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय, शिया मुसलमानों माने जाते हैं| यह समुदाय मुस्लिम महिलाओँ के खतना को एक धार्मिक परंपरा मानता है| सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समाज में आम रिवाज के रूप में प्रचलित इस इस्लामी प्रक्रिया पर रोक लगाने वाली याचिका पर केरल और तेलंगाना सरकारों को भी नोटिस जारी किया था| याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट में वकील सुनीता तिवारी ने याचिका दायर कर इस प्रथा पर रोक लगाने की मांग की है|

सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा समुदाय मुस्लिम समाज में नाबालिग लड़कियों का खतना करने पर सवाल उठाते हुए कहा कि महिला को अपनी ज़िन्दगी सिर्फ विवाह और पति के लिए ही नहीं जीनी होती| उसके कुछ और भी कर्तव्य हो सकते हैं|मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने यह सवाल उठाते हुए कहा कि महिलाओं की पति के लिए यह अधीनता संविधान का परिक्षण पास नहीं कर सकती| यह व्यवहार उनके निजता के अधिकार का उल्लंघन है|

बीते सोमवार यानी कि 30 जुलाई 2018 को दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों के खतना की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई|

सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि महिला सिर्फ पति की पसंदीदा बनने के लिए ऐसा क्यों करे? क्या वो पालतू भेड़ बकरियां है? उसकी भी अपनी पहचान है| कोर्ट ने कहा कि ये व्यवस्था भले ही धार्मिक हो, लेकिन पहली नज़र में महिलाओं की गरिमा के खिलाफ नज़र आती है| कोर्ट ने ये भी कहा कि सवाल ये है कि कोई भीमहिला के जननांग को क्यों छुए? वैसे भी धार्मिक नियमों के पालन का अधिकार इस सीमा से बंधा है कि नियम ‘सामाजिक नैतिकता’ और ‘व्यक्तिगत स्वास्थ्य’ को नुकसान पहुंचाने वाला न हो|

याचिकाकर्ता सुनीता तिवारी ने कहा कि बोहरा मुस्लिम समुदाय इस व्यवस्था को धार्मिक नियम कहता है| समुदाय का मानना है कि सात साल की लड़की का खतना कर दिया जाना चाहिए| इससे वो शुद्ध हो जाती है| ऐसी औरतें पति की भी पसंदीदा होती हैं| याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि खतना की प्रक्रिया को अप्रशिक्षित लोग अंजाम देते हैं| कई मामलों में बच्ची का इतना ज्यादा खून बह जाता है कि वो गंभीर स्थिति में पहुंच जाती है|

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इस मामले में केंद्र सरकार ने इस प्रथा के खिलाफ सुनीता तिवारी आदि द्वारा दायर याचिकाओं का समर्थन किया है| सरकार ने कहा कि वह धर्म के नामपर ऐसे किसी भी व्यवहार का विरोध करती है जो महिलाओं के शारीरिक अंगों की अखंडता का उल्लंघन करता है| उल्लेखनीय है कि कई यूरोपीय और अफ्रीकी देशों में लड़कियों के खतने को अपराध घोषित किया गया है|

हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि ये अभी लड़ाई का पहला पड़ाव है, क्योंकि कानून बनने के बाद उन्हें लागू करना अपना आप में किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है|

पीठ ने कहा कि सिर्फ इसलिए महिलाओं के साथ यह प्रथा ज़ारी नहीं रह सकती कि उन्हें विवाह करना है| महिला के विवाह से बाहर भी कई और कर्तव्य हो सकते हैं| इस मामले में कोर्ट ने पिछले दिनों महाराष्ट्र, राजस्थान,गुजरात और दिल्ली सरकारों को नोटिस जारी किये थे| इसके बाद केरल और तेलंगाना को भी इस मामले में पक्ष बनाया गया था|

गौरतलब है कि भारत के दाऊदी बोहरा समुदाय में महिलाओं के खतना पर रोक लगाने की मांग सुप्रीम कोर्ट में विचारधीन है| अफ्रीका के 25 से अधिक देश पहले ही प्रतिबंधित कर चुके हैं| संयुक्त राष्ट्र ने तो 2030 तक इसे पूरी तरह से खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित किया है|

क्या खतना बलात्कार के दायरे में आता है?

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याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह ने आगे कहा कि दुनियाभर में ऐसी प्रथाएं बैन हो रही हैं| खुद धार्मिक अंजुमन ऐसा कर रहे हैं| इस्लाम भी मानता है कि जहां रहो, वहां के कानून का सम्मान करो| वैसे भी, किसी को भी बच्ची के जननांग छूने की इजाज़त नहीं होनी चाहिए| आईपीसी की धारा 375 की बदली हुई परिभाषा में ये बलात्कार के दायरे में आता है| बच्ची के साथ ऐसा करना पॉक्सो एक्ट के तहत भी अपराध है| सुनवाई के दौरान इस बात पर भी चर्चा हुई कि क्लिटोरल हुड के कट जाने से महिलाएं यौन सुख से वंचित हो जाती हैं|

सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समाज में आम रिवाज के रूप में प्रचलित इस इस्लामी प्रक्रिया पर रोक लगाने वाली याचिका पर केरल और तेलंगाना सरकारों को भी नोटिस जारी किया था|

इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट से आग्रह किया कि वो मसले पर विस्तार से सुनवाई करें| इस आधार पर सुनवाई न बंद की जाए कि इसका असर पुरुष खतना प्रथा पर भी पड़ सकता है| दरअसल पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि धर्म के नाम पर कोई किसी महिला के यौन अंग कैसे छू सकता है? यौन अंगों को काटना महिलाओं की गरिमा और सम्मान के खिलाफ है|

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खतना है अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन

याचिकाकर्ता और पेशे से वकील सुनीता तिवारी का कहना है कि ये प्रथा तो अमानवीय और असंवेदनशील है| लिहाजा इसपर सरकार जब तक और सख्त कानून ना बनाए तब तक कोर्ट गाइडलाइन जारी करे| इसपर सरकार ने कोर्ट को बताया था कि कानून तो पहले से ही है| लेकिन इसमें मौजूद प्रावधानों को फिर से देखा जा सकता है| ताकि मौजूदा दौर के मुताबिक उसे समसामयिक और उपयोगी बनाया जा सके|

याचिका में कहा गया है कि लड़कियों का खतना करने की ये परंपरा ना तो इंसानियत के नाते और ना ही कानून की रोशनी में जायज है| क्योंकि ये संविधान में समानता की गारंटी देने वाले अनुच्छेदों में 14 और 21 का सरेआम उल्लंघन है| लिहाजा मजहब की आड़ में लड़कियों का खतना करने के इस कुकृत्य को गैर जमानती और संज्ञेय अपराध घोषित करने का आदेश देने की प्रार्थना की गई है|

केंद्र ने याचिका का किया था सर्मथन

केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका का समर्थन करते हुए कहा था कि धर्म की आड़ में लड़कियों का खतना करना जुर्म है और वह इस पर रोक का समर्थन करता है| इससे पहले केंद्र सरकार ने कहा था कि ‘इसके लिए दंड विधान में सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान भी है|’

आज जब आये दिन हम महिलाओं के खिलाफ हो रही वीभत्स घटनाओं के बारे में पढ़ते है, सुनते है और देखते हैं| ऐसे में सालों से दाऊदी बोहरा समुदाय में महिलाओं के खिलाफ चल रही खतने की कुप्रथा के खिलाफ कोर्ट का रुख शुभसंकेत है| लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि ये अभी लड़ाई का पहला पड़ाव है, क्योंकि कानून बनने के बाद उन्हें लागू करना अपना आप में किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है|